३२ साल के मुकेश असम के रहने वाले थे। 2012 में ऑल इंडिया में 14वीं रैंक लाने वाले मुकेश पांडेय तेज तर्रार, बेदाग और कड़क अफसर थे। उन्हें वर्ष 2015 में संयुक्त सचिव रैंक में प्रमोशन मिला था।
इतने काबिल और देश के सबसे कठिन परीक्षा में सफलता पाने और प्रशिक्षण के बाद भी अगर व्यक्ति अपने तनाव से नहीं जूझ सका तो ये किसी आश्चर्य से कम नहीं। 2012 बैच के आईएएस अधिकारी मुकेश पांडेय को 31 जुलाई को बक्सर का डीएम बनाया गया था। एक जिलाधिकारी के तौर पर यह उनकी पहली पदस्थापना थी। इसके पहले वे बेगूसराय के बलिया अनुमंडल में एसडीएम व कटिहार में डीडीसी के पद पर सेवाएं दे चुके थे।
गुरुवार को दिल्ली में उनके आत्महत्या की खबर ने सभी को सकते में डाल दिया। उन्होंने किन कारणों से आत्महत्या जैसा कदम उठाया यह पता नहीं चल सका है, हालांकि सूत्रों का कहना है कि उन्होंने अपने फोन से एक सन्देश भेजा था जिसमें आत्महत्या की बात लिखी गयी थी। उन्होंने सन्देश में लिखा था - “मैं जीवन से निराश हूं और मानवता से विश्वास उठ गया है।” सोचने और विचारने की बात है कि आखिर क्या वजह रही होगी जो इतना कड़क और बेदाग़ अफसर ने ये लिखा कि उनका विश्वास ‘मानवता’ से उठ चुका है। उनके साथ कार्य कर चुके लोगों ने भी ये बताया कि वे बेहद आशावादी थे। एक आशावादी व्यक्ति का इतना नकारात्मक कदम ! कहीं हम दोहरी ज़िन्दगी तो नहीं जी रहे? दुनिया के लिए कुछ और… अपने लिए कुछ और? तीन महीने की बेटी के पिता थे मुकेश पाण्डेय।
जीवन से निराश होना और मानवता से विश्वास उठना बहुत ही बड़ी बात है और वह तब और भी बड़ी हो जाती है जब ऐसा एक युवा और बेदाग़ आईएएस अधिकारी कहता है और इसे वजह बताकर वह आत्महत्या तक कर लेता है। मुकेश न जाने कितने युवाओं की प्रेरणा रहे होंगे, अपने आइकॉन को इस कदर कमज़ोर देखकर उन पर क्या गुज़री होगी ? इंसान कमज़ोर निकला या परिस्थितियों ने कमज़ोर बना दिया…किसी भी निर्णय पर पहुंचना तब तक मुश्किल है जब तक उचित शिनाख्त ना हो जाए।
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