‘आई ऍम फैन युसु’ के ऑनलाइन प्रकाशन के चौबीस घंटे के अंदर लाखों लोगों ने इसे साझा किया और उस पर बीस हज़ार से ज़्यादा टिप्पणियां आयीं। रातोरात युसु सफलता के शिखर पर पहुँच गयी। दिलचस्प ये कि इतनी लोकप्रियता को हैंडल कर पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा और वे अपने प्रशंसकों और मीडिया से बचने के लिए छिपने का जतन करने लगी थीं।
एक किसान की बेटी होने के नाते बचपन उनका गाँव में बीता। पढ़ने की शौक़ीन युसु पांच भाई बहनों में सबसे छोटी हैं। फैन युसु की कहानी किसी फ़िल्मी कहानी सी लगती है। गाँव में पली-बढ़ी एक स्त्री के संघर्ष की कहानी…उसकी जिजीविषा की कहानी। शायद ये उसकी इच्छाशक्ति ही रही होगी जिससे वो विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपना हौसला बनाए रखी। घरेलु हिंसा से तंग आकर उसने अपने पति को छोड़ दिया और दो बेटियों के पालन पोषण और उन्हें शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी स्वयं उठायी और इसके लिए उसने रेस्त्रां से लेकर कई जगह नौकरी भी की लेकिन कहीं टिक नहीं पायी और बाद में एक धनाढ्य के यहां उसके बच्चे की देखभाल करने की नौकरी पा ली।
फैन युसु खुद को बेहद साधारण मानती हैं, उन्हें ये अहसास ही नहीं कि उनमें कोई प्रतिभा भी है। आज लेखन ने फैन की ज़िन्दगी बदल दी है। किसी समय सैकड़ों माइग्रेंट मजदूरों में से एक फैन आज प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँच चुकी हैं। सच है काबिलियत को सामने आने में वक़्त भले लगे, लेकिन उसे कोई रोक नहीं सकता। हैट्स ऑफ फैन युसु…और लिखो, लिखती रहो।
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