शाम हो चली थी। सारे बच्चे छत पर उधम मचा रहे थे। उनकी धमा चौकड़ी की आवाज़ से बिट्टी का पढ़ाई से ध्यान बार बार उचट रहा था, लेकिन फिर पापा की घूरती आँखें, उसके ध्यान को वापिस ७ के पहाड़ा पर टिका दे रही थी । अब वो ज़ोर ज़ोर से पहाड़ा याद कर रही थी "सात एकम सात, सात दूनी चाॉदह" तभी आवाज़ आई "हमार चिरैयाँ बोलेला बउवा के मनवा डोलेला" बिट्टी अपने पिता की ओर देखी, उनका ध्यान कहीं और था। वह तुरंत खिड़की पर पहुँच कर नीचे झाँकने लगी। मोम से बनी रंग बिरंगी छोटी छोटी चिड़ियाँ । उसकी इच्छा हुई की बस अभी सब में प्राण आ जाए और सब सचमुच की चिड़ियाँ बन जाए । वो मोम की चिड़ियों की सुंदरता में डूबी हुई थी । तभी नीचे से चिड़िया वाले ने पूछा - "का बबी चिरैयाँ चाहीं का, आठ आना में एगो। " बिट्टी ने ना में सर हिलाया । फेरी वाले ने पुचकारते हुए कहा " जाए द आठ आना में तू दुगो ले लिहा।" बिट्टी फिर ना में सर हिला कर वापिस पिता के पास बैठ गई थी । उसने सर उठा कर देखा भी नहीं लेकिन पिता जी की घूरती आँखों का अहसास तब भी था । कमाल की बात ये थी, कि आज तक कभी पिता जी ने ना उसको डांटा था और ना ही मारा था, फिर भी उनकी आँखों से उसे डर लगता था । उनकी आज्ञा का उल्लंघन तो सपने में भी सोच नहीं सकती थी । फिर वो ज़ोर ज़ोर से पहाड़ा याद करने में जुट गयी । मन में बार-बार आ रहा था कि वो भी छत पर जाकर बच्चों के साथ खूब शोर मचाये, छुआ - छुई, डेंगा - पानी खेले, पर पापा का कहा तो उसे सबसे पहले मानना था । आँखें बंद कर रट्टा मारते हुए अचानक उसे लगा कि पहाड़ा तो उसे याद हो आया है, इसे वो सबसे पहले अपने पिताजी को सुनाना चाहती थी । ज्यों ही वो आँखें खोली पिता जी उसे वहाँ नहीं दिखे । उन्हें अपने सामने ना पाकर वो मायूस हो गई । अपना बस्ता बंद कर वो कमरे से बाहर निकली , अगले पल ही उसने देखा कि पापा उस मोम की चिड़िया वाले के पास से उसके लिए चिड़िया खरीद रहे थे । देखते ही देखते पिता जी ने मोम की रंग बिरंगी चिड़ियों का गुच्छा लाकर उसके हाथ में थमा दिया । वो ख़ुशी से उछल पड़ी । अब उसे छत पर खेलते बच्चों की आवाज़ और पुकार नहीं सुनाई पड़ रही थी, अब वो चिड़ियों की चहचहाहट में खोई थी ।
ये कहानी सरस्वती सुमन में फरवरी 2017 अंक में प्रकाशित !
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