दिल्ली का छोटा सा मेरा घर, और घर में है एक छोटी सी बालकनी. बालकनी में मैंने लकड़ी का एक छोटा सा रेक रखा हुआ है. एक दिन मैंने देखा एक कबूतरी बड़े ही जतन से वहाँ घोसला बना रही है, उसके जतन और मेहनत को देखते हुए मुझे उससे एक अलग सा लगाव हो गया. कुछ दिनों में उसने वहाँ अंडे दिए, मैं हर रोज़ देखा करती थी कि अंडे कि क्या हालत है, कबूतरी कैसी है, लंबे अंतराल तक सेने के बाद उस से चूजे निकल आए. उस दिन मेरी खुशी का ठिकाना नही था. ढेर सारी तस्वीरें ली... ऐसा लग रहा था जैसे अब वो मेरे परिवार का, मेरे घर का, मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन गए हो.
फिर एक दिन मैंने देखा एक कबूतर आकर उसे और उसके चूजों को चोंच से मार रहा है, उसके घोंसले को तोड़ रहा है. मैंने उसे भगाया, रात में देर तक उसकी सुरक्षा के लिए मैं दरवाज़ा खोले बालकनी में बैठी रही. जब देखी सबकुछ शांत है, फिर जाकर सो गयी. सुबह उठने के साथ सबसे पहले बालकनी में गयी.... वहाँ का नजारा दिल दहलाने वाला था. दोनों चूजे मरे पड़े थे, उसका घोस्ला टूटा हुआ था. थोड़ी देर बाद कौवे आए और शोरगुल के साथ उन चूजों को उठा कर ले गए. उसके बाद मैंने तय कर लिया कि अब मै कभी किसी से इतना लगाव नही रखूंगी.
समय बीता, मै इस घटना को भूल चुकि थी, छुट्टियों में घर गयी थी. वापिस आकर देखी फिर कबूतरी ने सुंदर सा घोंसला बना कर दो अंडे दे दिए थे. पहले मुझे बहुत गुस्सा आया, ऐसा लगा कि बस अब सब उठा कर फेंक दूँ लेकिन फिर उसे देखने के बाद मेरी हिम्मत जवाब दे गयी. ना चाहते हुए भी उसके प्रति ध्यान देने कि प्रक्रिया कि शुरुआत हो गयी. ऐसा लग रहा था कि बस इस बार तो मैं उन्हें बचा ही लूँगी, घोंसले को घेर दूँगी, ऐसा करूँगी... वैसा करूँगी. आज सुबह नींद खुली और मैं बालकनी में गयी, वहाँ का नजारा दिल दहलाने वाला था..... घोस्ला टूटा हुआ था.... कबूतरी के पंख बिखरे हुए थे.... कुछ पंख ग्रिल पर पड़े हुए थे....ऐसा लग रहा था जैसे उसने ख़ुद को बचाने कि कितनी कोशिशें कि होंगी, उसके अंडे टूटे हुए थे.... बालकनी में हर तरफ खून ही खून था. मुझे एहसास हुआ कि एक पक्षी और एक आदमी के व्यवहार में कितनी समानता है.
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