Skip to main content

घट रही संख्या बेटियों की



uke & Qyd ] mez & nks lky ------ 18 tuojh 2012 dks ,El esa lksyg lky dh ,d yM+dh NksM+ xbZ mls A nks lky dh bl cPph ds t[eksa dks ns[kdj ,slk yx jgk Fkk tSls u tkus fdruh ;krukvksa dks & >sydj og ;gka rd igqaph gSA gkFk iSj dh gfM~M;ka VqVh gqbZ Fkha] lj ij Hkkjh pksV Fkk] “kjhj ij nkar ls dkVs tkus ds fu”kku FksA bl cPph dks vLirky rd igqapkus okyh yM+dh Hkh bl ds ckjs esa fdlh iq[rk tkudkjh dks fn, cxSj ykirk gks xbZA ;s ckr vkSj gS fd cPph dh fLFkfr dks ns[krs gh MkWDVj~l blds bykt esa tqV x, A ;s muds fy, fdlh pSysat ls de ugha FkkA Qyd vkSj mlds ifjokj dh tkudkjh tqVkrs gq, tc iqfyl bl dsl dh rg rd igqaph rc lkeus vk;k yM+fd;ksa dh [kjhn Qjks[r ds flyflys dk ,d f?kukSuk lp tks lekt dks “keZlkj djus ds fy, dkQh gS A Qyd tSlh vkSj u tkus fdruh gh cfPp;ka gSa tks lqf[kZ;ka ugha cVksj ikrh vkSj va/ksjs esa dgha ne rksM+ nsrh gSaA ,d fjiksVZ dh ekusa rks fnYyh esa izfr fnu de ls de nks f”k”kqvksa dks ykokfjl NksM+ fn;k tkrk gS vkSj buesa ls T;knkrj yM+fd;ka gksrh gSaA ,d Lo;alsoh laLFkk us lwpuk ds vf/kdkj dk mi;ksx dj ;s irk yxk;k fd pkbYM osyQs;j dfefV us lky 2010 esa djhc 740 ykokfjl cPps izkIr fd,A
?kj dh gS eqLdku csfV;ka] lcds eu dk eku csfV;kaA dqN fnuksa igys ;wukbVsM us”kUl fMikVZesaV vkWQ bdksukWfed ,aM lks”ky vQs;j~l ;kfu ;w,u Mslk us ,d fjiksVZ tkjh fd;kA fo”o ds 150 ns”kksa ij fd, x, losZ ls feys vkadM+s ;s crkrs gSa fd fo”o ds flQZ nks ns”k ,sls gSa tgka dU;k f”k”kq dh e`R;q nj yM+dks ls T;knk gS vkSj oks gSa phu vkSj Hkkjr A gkykafd f”k”kq e`R;q nj ekeys esa gekjk ns”k phu ls csgrj LFkku ij gSA phu esa tgka ;s vuqikr 100 dU;k f”k”kq ij 76 yM+ds  ntZ gS ogha Hkkjr esa ;s la[;k 100 ij 122 gSA ysfdu vxj 1 ls 5 lky rd ds yM+ds vkSj yM+fd;ksa dh e`R;q nj dk vuqikr fudkyk tk, rks Hkkjr esa YkM+dksa dh vis{kk yM+fd;ksa dh e`R;q nj fo”o Hkj esa lcls T+;knk gSA ;s vuqikr gS 100 yM+fd;ksa ij 56 yM+ds ;kfu varj fcYdqy vk/kk gks tkrk gSA vkf[kj D;k otg gS tks bUQSaV eksVZfyVh jsf”k;ks  ls T;knk [kjkc fLFkfr gS pkbYM MsFk jsf”k;ks dhA yM+fd;ka gSa rks thou gS A D;k vkius lksapk gS fd vxj yM+fd;ka uk gksa rks D;k gksxk \ csfV;ksa dks cpkb, D;ksafd vkt dh csfV;ka dy dh eka gSa vkSj eka gSa rks vki vkSj ge gSa ------ vkSj rHkh lekt gSA

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

Comments

सार्थक लेखन....

शुक्रिया.

Popular posts from this blog

हुंकार से उर्वशी तक...(लेख )

https:// epaper.bhaskar.com/ patna-city/384/01102018/ bihar/1/ मु झसे अगर यह पूछा जाए कि दिनकर की कौन सी कृति ज़्यादा पसंद है तो मैं उर्वशी ही कहूँ गी। हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी जैसी कृति को शब्दबद्ध करने वाले रचनाकार द्वारा उर्वशी जैसी कोमल भावों वाली रचना करना, उन्हें बेहद ख़ास बनाती है। ये कहानी पुरुरवा और उर्वशी की है। जिसे दिनकर ने काव्य नाटक का रूप दिया है, मेरी नज़र में वह उनकी अद्भुत कृति है, जिसमें उन्होंने प्रेम, काम, अध्यात्म जैसे विषय पर अपनी लेखनी चलाई और वीर रस से इतर श्रृंगारिकता, करुणा को केंद्र में रख कर लिखा। इस काव्य नाटक में कई जगह वह प्रेम को अलग तरीके से परिभाषित भी करने की कोशिश करते हैं जैसे वह लिखते हैं - "प्रथम प्रेम जितना पवित्र हो, पर , केवल आधा है; मन हो एक, किन्तु, इस लय से तन को क्या मिलता है? केवल अंतर्दाह, मात्र वेदना अतृप्ति, ललक की ; दो निधि अंतःक्षुब्ध, किन्तु, संत्रस्त सदा इस भय से , बाँध तोड़ मिलते ही व्रत की विभा चली जाएगी; अच्छा है, मन जले, किन्तु, तन पर तो दाग़ नहीं है।" उर्वशी और पुरुरवा की कथा का सब

यादें ....

14 फरवरी - प्रेम दिवस...सबके लिए तो ये अपने अपने प्रेम को याद करने का दिन है,  हमारे लिए ये दिन 'अम्मा' को याद करने का होता है. हम अपनी 'दादी' को 'अम्मा' कहते थे- अम्मा के व्यक्तित्व में एक अलग तरह का आकर्षण था, दिखने में साफ़ रंग और बालों का रंग भी बिलकुल सफेद...इक्का दुक्का बाल ही काले थे... जो उनके बालों के झुरमुट में बिलकुल अलग से नजर आते थे. अम्मा हमेशा कलफ सूती साड़ियाँ ही पहनती.. और मजाल था जो साड़ियों की एक क्रिच भी टूट जाए। जब वो तैयार होकर घर से निकलती तो उनके व्यक्तित्व में एक ठसक होती  । जब तक बाबा  थे,  तब तक अम्मा का साज श्रृंगार भी ज़िंदा था। लाल रंग के तरल कुमकुम की शीशी से हर रोज़ माथे पर बड़ी सी बिंदी बनाती थी। वह शीशी हमारे लिए कौतुहल का विषय रहती। अम्मा के कमरे में एक बड़ा सा ड्रेसिंग टेबल था, लेकिन वे कभी भी उसके सामने तैयार नही होती थीं।  इन सब के लिए उनके पास एक छोटा लेकिन सुंदर सा लकड़ी के फ्रेम में जड़ा हुआ आईना था।  रोज़ सुबह स्नान से पहले वे अपने बालों में नारियल का तेल लगाती फिर बाल बान्धती।  मुझे उनके सफेद लंबे बाल बड़े रहस्यमय

वसंतपुत्री का वसंत से पहले चले जाना...

ज बसे मैंने हिंदी साहित्य पढ़ना और समझना शुरू किया....तब से कुछ लेखिकाओं के लेखन की कायल रही जिनमें कृष्णा सोबती और मन्नू भंडारी का नाम सबसे ऊपर है। दिलचस्प ये कि दोनों ही लेखिकाओं से मिलने और साक्षात्कार करने का कभी सौभाग्य नहीं मिल सका। अपने कार्यक्रम के लिए दोनों से ही मेरी बातें हुई और दोनों ने ही हमेशा मना किया। 2015 से लेकर 2017 के बीच  कृष्णा सोबती जी से तो हर तीन चार महीने में  कॉल कर के उनकी तबियत पूछती और कैमरा टीम के साथ घर आने की अनुमति मांगती...अंततः मैं समझ गई वे इस इंटरव्यू के लिए तैयार नहीं होंगी और मैंने उन्हें फोन करना बंद कर दिया। जब ज्ञानपीठ मिलने की खबर मिली तब ऐसा लगा कि शायद अब साक्षात्कार के लिए तैयार हो जाएं फिर पता चला कि तबियत खराब होने की वजह से उनकी जगह अशोक वाजपेयी जी ने उनका पुरस्कार ग्रहण किया।   वे मेरी प्रिय लेखिकाओं में से थीं और हमेशा रहेंगी। मैंने कम लेखिकाओं के लेखन में इतनी उन्मुक्तता देखी जो यहाँ पढने को मिली।  कई बार  उनकी कहानियों पर खासा विवाद भी हुआ क्योंकि  किसी लेखिका ने साहस के साथ स्त्री मन और उसकी ज़रूरतों पर  पहली बार  लिखा था।  एक वर