प्रेम पर्व के परम मौके पर दो साल पहले लिखे इस लेख को मैंने दोबारा अपने ब्लॉग पर डाला है। अगर इससे किसी किसी की भावनाएं आहत होती है तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ... सभी प्यार करने वालों को समर्पित है ये लेख .... प्रेम .... प्यार ... इश्क.... मोहब्बत... कितने अच्छे शब्द हैं । किसी ज़माने में प्रेम में पड़े लोगों के लिए इनका गहरा मतलब हुआ करता था। एक प्यार से भरा दिल अपनी चाहत का इज़हार अक्सर पत्रों के माध्यम से किया करता था। फ़िर वो पत्र या तो 'मुग़ल ऐ आज़म ' फ़िल्म की तरह कमल के फूल की पंखुरियों में छिपा कर बहते जल के माध्यम से प्रियतमा तक पहुँचाया जाता था, या फ़िर किताबों में रख कर या फ़िर 'मैंने प्यार किया' फ़िल्म की तरह कबूतर बनता था संदेशवाहक। कितना रोमांटिक हुआ करता होगा तब प्रेम पत्र, जिसे पढ़ते ही नायिका चाहे ना चाहे इजहारे मोहब्बत को तुंरत स्वीकार कर लेती थी। आज दुनिया हाईटेक हो गई है, नायक नायिका बिंदास हो गए हैं। आज मिले...कल प्यार हुआ.... परसों शादी... और फ़िर तलाक, मामला ख़त्म और फ़िर नई कहानी शुरू । हाथ में मोबाइल है ...घर में कंप्यूटर। जब मन किया एस एम् एस कर दिया या फ़िर बहुत दिल से इज़हार करना है तो प्रेम पर्व तो है ही.... साथ ही है हाई टेक ग्रीटिंग्स, बस एक क्लिक करने भर की देरी है। "वैलेंटाइन डे " यानी नए ज़माने का प्रेम पर्व। यानी अपने जज़्बात को बताने का एक और मौका... हर प्यार करने वाले एक दूसरे को उपहार ज़रूर देते हैं फ़िर चाहे एक गुलाब का फूल ही क्यों ना हो । यहाँ एक बात और बताना चाहूंगी की इस दिन गुलाब के एक फूल की कीमत भी बहुत ज़्यादा होती है। आज नायिका घर की चाहरदीवारी के अन्दर क़ैद नही है... ना ही उसके पैरों में लज्जा का बंधन है। आज वो चूजी हो गई है... वो अपनी पसंद नापसंद का इज़हार कर सकती है। आज वो ज़्यादा उन्मुक्त है, वो ख़ुद भी कमाती है , इसलिए उसे पता है की किस गिफ्ट की कीमत क्या है । वो , उसे प्रोपोस करने वाले के स्तर का पता उसके उपहार की कीमत से लगा लेती है। आज नायिका नायक का इंतज़ार नहीं करती उसके पास बहुत ऑप्शन्स हैं। जी हाँ ये आज के "प्रेम पर्व" और उसे सेलिब्रेट करते युवा वर्ग और किशोरों की कहानी है जो अपने गर्ल फ्रेंड को रिझाने के लिए बेतहाशा खर्च करने से भी गुरेज नही करते और गर्ल फ्रेंड्स इमोशंस से ज़्यादा गिफ्ट की कीमत पर मर मिटती हैं। |
https:// epaper.bhaskar.com/ patna-city/384/01102018/ bihar/1/ मु झसे अगर यह पूछा जाए कि दिनकर की कौन सी कृति ज़्यादा पसंद है तो मैं उर्वशी ही कहूँ गी। हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी जैसी कृति को शब्दबद्ध करने वाले रचनाकार द्वारा उर्वशी जैसी कोमल भावों वाली रचना करना, उन्हें बेहद ख़ास बनाती है। ये कहानी पुरुरवा और उर्वशी की है। जिसे दिनकर ने काव्य नाटक का रूप दिया है, मेरी नज़र में वह उनकी अद्भुत कृति है, जिसमें उन्होंने प्रेम, काम, अध्यात्म जैसे विषय पर अपनी लेखनी चलाई और वीर रस से इतर श्रृंगारिकता, करुणा को केंद्र में रख कर लिखा। इस काव्य नाटक में कई जगह वह प्रेम को अलग तरीके से परिभाषित भी करने की कोशिश करते हैं जैसे वह लिखते हैं - "प्रथम प्रेम जितना पवित्र हो, पर , केवल आधा है; मन हो एक, किन्तु, इस लय से तन को क्या मिलता है? केवल अंतर्दाह, मात्र वेदना अतृप्ति, ललक की ; दो निधि अंतःक्षुब्ध, किन्तु, संत्रस्त सदा इस भय से , बाँध तोड़ मिलते ही व्रत की विभा चली जाएगी; अच्छा है, मन जले, किन्तु, तन पर तो दाग़ नहीं है।" उर्वशी और पुरुरवा की कथा का सब
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