अभी कुछ दिन पहले ही एक अखबार के छोटे से कॉलम में पढ़ी की बिहार के किशनगंज की रहने वाली एक महिला को उसके पति ने ही दिल्ली में बेच दिया । वो तो उस महिला की बहादुरी थी और एक संस्था की दिलेरी जिससे वो महिला अपनी अस्मत बचाने में कामयाब रही। हालाँकि अन्य अखबारों या खबरिया चैनलों में इसकी चर्चा मुझे दिखी नहीं। शायद उनके लिए ये बड़ी ख़बर नहीं थी क्योंकि अब तो ऐसी घटनाएं आम हो गई है। मेरा ध्यान इस कॉलम की ओर इसलिए गया क्योंकि इस घटना से कुछ दिन पहले ही मुझे इस विषय पर काम करने का मौका मिला था। उस दौरान मेरी मुलाक़ात इसी संस्था के संचालक से हुई थी जो लंबे समय से लड़कियों और महिलाओं को खरीद फरोख्त से बचाने और उन्हें सशक्त करने के प्रयास में जुटे हुए हैं। उन्होंने बताया की कैसे लड़कियों की खरीद फरोख्त में एक पुरा गिरोह काम करता है। ऐसे गिरोह के चंगुल में ख़ासतौर पर वैसे लोग या वैसे परिवार फंसते हैं, जो बेहद गरीब होते हैं , जिनके घर में बेटियाँ ज़्यादा होती हैं। दिल्ली, मुंबई, हरियाणा,जयपुर और आगरा में इनके ग्राहक ज़्यादा होते हैं।
सवाल उठता है लडकियां लायी कहाँ से जाती हैं? एक अध्ययन से ये बात सामने आई है की पड़ोसी देशों से करीब १० प्रतिशत लडकियां यहाँ लायी जाती हैं, वही देश के अन्य राज्यों से लायी जाने वाली लड़कियों की संख्या करीब ८९ फीसदी है। बांग्लादेश से लायी गई लड़कियों को आमतौर पर कोल्कता के चकलाघर में पनाह मिलता है। वहां से लड़किया भारत के अन्य शहरों में बेचीं जाती हैं। ठीक इसी तरह नेपाल से भी बड़ी संख्या में लड़कियों को लाया जाता है। किसी भी लड़की का दाम उसकी उम्र और सुन्दरता पर निर्भर करता है, और वो चार सौ से लेकर सत्तर हज़ार तक हो सकता है। इन्हें आमतौर पर घरेलू काम, उद्योग धंधे , चकलाघर या फ़िर शादी के लिए बेचा जाता है। जो लडकियां चकलाघर में बेचीं जाती हैं उन्हें हर दिन एक नए जुल्मोसितम का सामना करना पड़ता है। भूखा रखना, मारना पीटना , जलाना ये तो रोज़ का काम है, कभी कभी तो उन्हें जान से भी हाथ धोना पड़ता है।
सच है ये दुनिया जितनी खूबसूरत नज़र आती है उतनी है नहीं । मुझे ऐसी पीड़ित और शोषित बच्चियों से मिलने का मौका भी मिला। उनकी आँखों में सूनापन और उदासी थी। उनमे से कई तो अपने घर का पता भी नहीं जानती थी, फिलहाल उनका आशियाना बना हुआ है एक स्वयंसेवी संस्था का बाल आश्रम । मेरी बातें अभी भी अधूरी है.................
सवाल उठता है लडकियां लायी कहाँ से जाती हैं? एक अध्ययन से ये बात सामने आई है की पड़ोसी देशों से करीब १० प्रतिशत लडकियां यहाँ लायी जाती हैं, वही देश के अन्य राज्यों से लायी जाने वाली लड़कियों की संख्या करीब ८९ फीसदी है। बांग्लादेश से लायी गई लड़कियों को आमतौर पर कोल्कता के चकलाघर में पनाह मिलता है। वहां से लड़किया भारत के अन्य शहरों में बेचीं जाती हैं। ठीक इसी तरह नेपाल से भी बड़ी संख्या में लड़कियों को लाया जाता है। किसी भी लड़की का दाम उसकी उम्र और सुन्दरता पर निर्भर करता है, और वो चार सौ से लेकर सत्तर हज़ार तक हो सकता है। इन्हें आमतौर पर घरेलू काम, उद्योग धंधे , चकलाघर या फ़िर शादी के लिए बेचा जाता है। जो लडकियां चकलाघर में बेचीं जाती हैं उन्हें हर दिन एक नए जुल्मोसितम का सामना करना पड़ता है। भूखा रखना, मारना पीटना , जलाना ये तो रोज़ का काम है, कभी कभी तो उन्हें जान से भी हाथ धोना पड़ता है।
सच है ये दुनिया जितनी खूबसूरत नज़र आती है उतनी है नहीं । मुझे ऐसी पीड़ित और शोषित बच्चियों से मिलने का मौका भी मिला। उनकी आँखों में सूनापन और उदासी थी। उनमे से कई तो अपने घर का पता भी नहीं जानती थी, फिलहाल उनका आशियाना बना हुआ है एक स्वयंसेवी संस्था का बाल आश्रम । मेरी बातें अभी भी अधूरी है.................
Comments
tumhari bat ek din zarur poori hogi...
or wo subah bhi ayegi...
jiska tumhare or hamre dil ko intzaar hai..
wo subah ayegi... zarur ayegi..
sach ka ek or panna khola...
waise main aapki is rachna par apna comment phir kabhee aur doongaa
media to ab chatpati chijon ko parosh rahin hain. media ko isse kya lena dena. aapne achchha likha likhte rahiye 'AAINA' naam ke anusar kaam bhi hain. yahi samaj hain dikhate rahiye.
thank u