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छोटे शहर की याद

छोटे शहर की याद बहुत आती है

वो सुबह सुबह पूजा की घंटियों की आवाजें

फिर फेरीवाले और दूधवाले की पुकार

शाम में समोसे और चाय का साथ ।

जी करता है कुछ वक्त निकाल कर

बड़े शहर की भागदौड़ से बहुत दूर

चली जाऊ वापस उस छोटे शहर की गोद में

फिर से वही खुलापन , वही सरलता

छोटी छोटी बातों पर खुश हो जाना

छोटी बात पर उदास हो जाना

पड़ोस के सुख दुःख में साथ निभाना

पर अफ़सोस अब बहुत ही मुश्किल है

वापस जा पाना।

Comments

Anonymous said…
Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Aluguel de Computadores, I hope you enjoy. The address is http://aluguel-de-computadores.blogspot.com. A hug.
Bandmru said…
दीदी महानगरों के लिये सिर्फ़ इतना ही वैसे छोटे शहरों में जो सुकून है वो महानगरों में कहाँ हैं वैसे बहुत अच्छा लगा कविता महानगरों के लिये .
जहा,
माँ की ममता बृद्धाआश्रम में
धनलोलुप पत्नी हैं मन में
भरी हुई इरिश्या जन जन में
है कौन रिश्ता निकटतम में
lumarshahabadi said…
क्या खूब लिखती हो

क्या खूब फेकती हो

फेको-फेको खूब फेको

लेकिन मेरा भी देखो

बड़े शहरों में रहने वाले क्यों करते छोटे शहरों को याद

ऊँची उड़ान भरने वाले क्यों जमीं सुनते अहलाद

पल-पल आगे बढ़ने की होड़ में रहतें हैं

हर कदम अपनों से दूर भागते हैं

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