तिहाड़ कि महिला कैदियों द्वारा लिखी कविताओं का संकलन 'तिनका तिनका तिहाड़' पढने का मौका मिला. उनकी कविताओं से याद आया मुझे वो दिन जब एक कार्यक्रम के शूट के लिए तिहाड़ में बंद महिलाओं से मिलने का मौका मिला था. तब तक जेल को मैंने या तो कल्पनाओं में देखा था या फिर फिल्मों में. पहली बार तिहाड़ के अन्दर जाते हुए एक अजीब सी सिहरन हुयी थी. वहाँ बंद महिला कैदियों से जब बातें हुई तो उनका दर्द हमें भी दुखी कर गया. उनकी बातों से एहसास हुआ कि अपनों से दूर् होने कि चुभन.... ज़िंदगी को एक चहारदिवारी के भीतर समेट लेने कि घुटन क्या होती है...और कैसे एक घटना ( दुर्घटना कहना ज़्यादा उचित होगा ) किसी कि पूरी ज़िंदगी बदल देती है. वहाँ ज्यादातर ऐसी मिली जो कहना बहुत कुछ चाहती थी पर कुछ भी कह नही पा रही थी... सिर्फ़ उनकी आँखें सजल हो जा रही थी. और कुछ ऐसी भी मिली जो वहाँ के माहौल से पुरी तरह जुड़ गयी थी... अब सलाखों से कोई फर्क नही पड़ता था... वही उनकी दुनिया थी.
कुछ वैसा ही उनकी कविताएँ पढ़ते हुए मैंने महसूस किया. एक कसमसाहट है उनकी कविताओं में...किसी कि दुधमुँही बेटी को माँ के सहारे छोड़ सलाखों के पिछे ज़िंदगी गुजारने कि मजबूरी है... तो किसी कि एक गलती ने उसे गुनहगार बना ऐसे अंधकार में धकेल दिया जहाँ उसका साथी, परिवार सबकुछ सिर्फ़ उसकी तन्हायी है... घर के सदस्यों ने भी उस से सारे रिश्ते तोड़ लिए... तो किसी का पति भी वही एक बैरक में बंद है जिस से हफ्ते में सिर्फ़ एक दिन वो मुलाकात कर पाती है. सबकी अलग कहानी... लेकिन भाव सिर्फ़ एक... वही कसमसाहट... वही बेचैनी... वही अकेलापन... वही उदासी. रमा चौहान कि लिखी कविताएँ कैद पिंजरे कि, सलाखें, बेटी कि पुकार, माँ के लिए माफी कुछ ऐसी कविताएँ है जिससे उनकी भावनाएँ सरलता से दिल में उतर जाती है. सीमा रघुवंशी, रिया शर्मा और आरती कि कविताएँ भी कभी माँ कि ममता कि बात करती है तो कभी जीवन कि गूढ़ता कि. कुल मिलाकर ये संकलन मुझे पसंद आया... लेकिन कुछ चीज़ें खटकी... मसलन हर रचनाकार का परिचय दिया गया है जिसमें ये बताया गया है कि एक हादसे ने इन्हें सलाखों के पिछे पहुँचा दिया. अच्छा होता कि या तो उन हादसों का ज़िक्र किया जाता या फिर परिचय से इसे हटा ही दिया जाता. दूसरा इस किताब का मू्ल्य इतना ज़्यादा रखा गया है कि आम जन उससे खरीदने से पहले सोचेंगे. हालाँकि ये प्रयास बहुत ही अच्छा है... लेकिन अगर ये आम लोगो तक ना पहुँच सके तो फिर प्रयास सफल कैसे हो सकता है.
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