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एक मुलाक़ात

एक कार्यक्रम के सिलसिले में मुझे उषा राय से मुलाक़ात करने का मौका मिला। जी हाँ वही उषा राय जिनका नाम उन महिला पत्रकारों में शामिल है जिन लोगों ने साठ के दशक में पत्रकारिता में महिलाओं को एक मुक़म्मल स्थान दिलाने की एक पहल शुरू की थी। उनसे मुलाक़ात के बाद कई ऐसी जानकारियाँ मिली जो हम जैसे नए पत्रकारों के लिए ख़ास था। आज महिला पत्रकारों की जैसी स्थिति है हमेशा से वैसी नही थी। ये उस समय की महिला पत्रकारों के प्रयास का हीं कमाल है की आज महिलाऐं बिना किसी पाबन्दी या मुश्किलात के आसानी से पत्रकारिता कर पा रही हैं। साठ के दशक में महिलाओं को पत्रकार रखा ही नहीं जाता था। उषा जी ने एक और महिला पत्रकार प्रभा दत्त की कहानी बताई की कैसे जब वे एक प्राइवेट अखबार में नौकरी के लिए गयी तो उन्हें सिर्फ़ इसलिए मना कर दिया गया क्योंकि वे एक महिला थी। डेढ़ साल बाद उसी अखबार ने एक महिला को डेस्क पर रखा तब प्रभा जी ने उस अखबार के दफ्तर का दरवाज़ा फ़िर खटखटाया और कहा की जब उस महिला को वहाँ काम मिल सकता है तो उन्हें क्यो नही। अंत में जीत प्रभा जी की ही हुई। यही नही पहले महिला पत्रकारों के लिए मतेर्निटी लीव जैसी कोई सुविधा नही दी जाती थी। इसके लिए भी तब महिला पत्रकारों ने काफ़ी मशक्कत की। तब महिलाओं से या तो डेस्क पर काम लिया जाता था या फिर सॉफ्ट स्टोरी को कवर करने के लिए कहा जाता था।
आज समय बदल गया है, महिलाओं को हर क्षेत्र में भागीदारी मिल रही है। पर आज भी हर बार महिलाओं को पहले ये साबित करना होता है की वे अपने कार्य को लेकर गंभीर हैं, तब जाकर लोग उसे गंभीरता से लेते हैं। हर बार महिलाओं को ये साबित करना होता है की वे सिर्फ़ अपना जॉब करना चाहती हैं। हलाकि क्षेत्रीय स्तर पर आज भी महिला पत्रकारों की स्थिति में ज्यादा का अन्तर नहीं है। आज भी वहाँ महिलाऐं सुब एडिटर से ज्यादा कुछ नही बन पाती। आज भी उन्हें पैसे दिन के हिसाब से मिलते हैं। आज भी उन्हें यही समझा जाता है की वे अगर पत्रकारिता में आई हैं तो सिर्फ़ पति खोजने के लिए। आज भी क्षेत्रीय स्तर पर अखबारओं के बहुत कम ऐसे कार्यालय हैं जहाँ महिला पत्रकारों के लिए अलग से वाश रूम की व्यवस्था हो। लेकिन चाहे कुछ हो पर इतना तो यकीं है की आज नहीं तो कल वहाँ भी महिला पत्रकारों की स्थिति सुधरेगी। चलते चलते जब इतनी दूर निकल आए, तो यकीं है की हम आस्मान भी छू लेंगे।

Comments

Udan Tashtari said…
निश्चित ही स्थितियों में सुधार आया है. आगे और सुधार आये, शुभकामनाऐं.
rakhshanda said…
ठीक कहा आपने,खुदा करे हम आसमान छू लें(आमीन)
मीत said…
hi priyambara...
god bless u

tumharo ek kavita padh kar ankho mein pani a gaya..

bahut achcha likhti ho

mein tumko mail karna chahta hoo
par tumhara mail id nahin janta mera meil ID hai namyamekhla@yahoo.co.in


plz rpl plsssss
Bandmru said…
वो समय और था जब नारियों के बारे में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भारत दुर्दशा में लिखा था
होगी कहाँ तक कर्कशा, ऐ लेखनी तू पर्वसा
गृह नारियों की जो हमारी लिख सके तू दुर्दशा ।

अब समय बदल गया हैं और अगर हम नारियों के लिये गर्व से कह सकते हैं की ......
नारी तुम केवल शरधा हो
विश्वास रजत नभ पग तल में
पीयूष श्रोत सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में ।

बहुत अच्छा दीदी रोचक हैं
Deepak said…
आपकी यह पंक्ति दिल को छू गयी...
"आज भी उन्हें यही समझा जाता है की वे अगर पत्रकारिता में आई हैं तो सिर्फ़ पति खोजने के लिए।"
वस्तुतः तकरीबन हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति कमोबेश यही है....फिर भी चूँकि पत्रकारिता क्षेत्र में सरकारी सेवा जैसा कोई मौका शायद उपलब्ध नहीं है तभी अखबार आदि महिलाओं के साथ मनमाना भेदभाव कर पाते हैं...हालाँकि इधर माहौल काफी कुछ बदला है...पर अभी बहुत कुछ सुधारना और बाकि है...

दीपक शुक्ल...
Deepak said…
आपकी यह पंक्ति दिल को छू गयी...
"आज भी उन्हें यही समझा जाता है की वे अगर पत्रकारिता में आई हैं तो सिर्फ़ पति खोजने के लिए।"
वस्तुतः तकरीबन हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति कमोबेश यही है....फिर भी चूँकि पत्रकारिता क्षेत्र में सरकारी सेवा जैसा कोई मौका शायद उपलब्ध नहीं है तभी अखबार आदि महिलाओं के साथ मनमाना भेदभाव कर पाते हैं...हालाँकि इधर माहौल काफी कुछ बदला है...पर अभी बहुत कुछ सुधारना और बाकि है...

दीपक शुक्ल...

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