Skip to main content

Posts

Showing posts from September 9, 2018

हिंदी की विवशता

हिंदी सिर्फ हमारी भाषा नहीं बल्कि एक पूरी संस्कृति है। विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में चौथे स्थान पर है हिंदी। आंकड़ों के लिहाज से यह कहा जा सकता है कि आज हिंदी विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। हिंदी भाषी जहां भी गए हिंदी के साथ ही उसकी सम्पूर्ण संस्कृति लेकर गए, जिन्हें नए देश की आबो हवा में भी संरक्षित रखा और नए सिरे से प्रसारित करने का काम किया। मॉरीशस भी ऐसे ही देशों में से एक है जहां अठारहवीं सदी में बड़ी संख्या में भारतीयों को मजदूरी करने के उद्देश्य से लाया गया था। इन्हीं मजदूरों ने नए मॉरीशस की नींव रखी। वर्तमान समय में मॉरीशस को छोटा भारत की संज्ञा दी जाती है। आर्यसभा संस्था 1903 से हिंदी के प्रचार प्रसार एवं सामाजिक कार्यों में लगी है। आज इस संस्था की 200 से ज़्यादा शाखाएं हैं जो हिंदी सिखाती है। इस संस्था की नींव रखे जाने के पीछे की घटना भी दिलचस्प है। गिरमिटिया देशों में हिंदी काफी फली फूली। त्रिनिदाद एवं टोबैगो के रहने वाले पंडित रामप्रसाद परिसान बताते हैं कि हिंदी को इन देशों में दूसरी भाषा का दर्जा प्राप्त है। छोटे-छोटे रोजमर्रा के शब्दों क

इमरोज़ होना आसान नहीं...

आज मैं आपणें घर दा नंबर मिटाइआ है ते गली दे मत्थे ते लग्गा गली दा नांउं हटाइया है- आज मैंने अपने घर का नंबर मिटाया है और गली के माथे पर लगा गली का नाम हटाया है और हर सड़क की दिशा का नाम पोंछ दिया है पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है तो हर देश के, हर शहर की, हर गली का द्वार खटखटाओ यह एक शाप है, एक वर है और जहाँ भी आज़ाद रूह की झलक पड़े – समझना वह मेरा घर है- सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम पंजाबी के साथ ही हिंदी के पाठकों के दिलों में आज भी ज़िंदा हैं। मूलतः पंजाबी में लिखने वाली अमृता जी की ज़्यादातर रचनाएँ हिंदी में भी उपलब्ध हैं। किशोरावास्था से ही लेखन कार्य शुरू करने वाली अमृता ने कविताएँ, कहानियों  सहित विभिन्न विधाओं में लिखा और इसके लिए उन्हें देश और अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले। उनकी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ को भी लोगों ने खूब पसंद किया। अ मृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 में पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था।  बचपन लाहौर में बीता, शिक्षा भी लाहौर में ही हुई। छोटी सी उम्र में माँ का साया सिर से उठ गया था, जिसकी कमी अमृता ने ताज़िन्दगी महस