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Showing posts from July 12, 2015

आत्मसात

रकसां में डूबी, बादलों से उतरी थी, नन्ही सतरंगी परियां - मेरे घर की दहलीज़ पे नाचती रही थी देर तक फिर एक - एक कर समा गई मेरी रूह में - बारिश की बूंदों को, नाचते हुए, देखा है कभी ? © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

एक ख्याल .... बस यूँ हीं

ये रात अक्सर मुझ-सी लगती है, और बादल कुछ- कुछ, तुम-सा ! हँसता बादल, उदास रात, आज मिले हैं, बरसों बाद। (एक रात बादलों को भटकता देख उपजा एक ख्याल ) © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!