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Showing posts from November 16, 2014

साझा रिश्ता

हर रिश्ते से परे एक रिश्ता हमारे दरम्यां- जिसे समझने की ज़रूरत ना तुम्हे पड़ी ना मुझे - साझे हर्फ़ साझा लफ्ज़ साझे ख्वाब साझे जज़्बात साझी हसरतें तेरी हर चीज़ साझी प्रेम भी साझा- बस, मंज़ूर नहीं तेरी बाहों के सरमाया का साझा होना, जिस पर सिर रख कर अनगिनत शामें गुज़ारी मैंने। जानें कितनी दफा आँसुओं से भी धुली थी वो, लेकिन ये भी तो सच है साझे रिश्ते में हक़ कहाँ! मेरे रहबर  कुछ रिश्ते को नाम देना बहुत मुश्किल, लेकिन कितना जरुरी होता है कभी कभी ! © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

‘उदास शाम’ (गीतिका )

उदास शामें और ये तन्हाई , प्यार किया तो ये सज़ा पाई। खोखली रवायतों से लड़ना , बदले में मिली सिर्फ रुसवाई। उनका आना फिर चले जाना , इश्क में दिल ने फिर चोट खाई। इक आशियाँ सजा लिया मिलकर , तोड़ गया वो सनम हरजाई। झरते रहे आँखों से आंसू , बिन मौसम ये बरसात आयी। © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!