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Showing posts from September 21, 2014

हर्फ़ जो दफ़न हो गए थे डायरी के पन्नों में #05081997‬

मैं सूर्य को अपनी हथेलियों में कैद करना चाहती हूँ, ताकि उसकी रोशनी किसी और तक ना पहुंचे, परन्तु सत्य तो यह है की वह सूर्य जो दूर से इतना सुन्दर लगता है, सबके लिए इतना उपयोगी है.… सारे संसार को रोशन करता है , वही करीब जाने पर किसी को भी भस्म करने की क्षमता रखता है।   सूर्य को अस्ताचल में जाते हुए देखना अच्छा लग रहा है।  सूर्यास्त के पश्चात ये ज़मीं अन्धकार से भीग जाएगी।  निशा की कालिमा के बीच रवि के प्रकाश से चमकते हुए पूर्णवासी के चाँद को देखने का इंतज़ार करुँगी।  वो चाँद कितना सुन्दर होता है ना बिलकुल गोल, चमकता हुआ सा।  गुलाब के फूल की अनछुई कोमल पत्तियों पर मोतियों सी चमकती हुयी पारदर्शी पवित्र ओस की बूँदें दिल को एक अजीब सा सुकून देती है।  ये सुकून एक अनोखी भावना को जन्म देती है,  जो बासंती  हवा से भी चंचल, फगुनाहट के उमंग से ओत - प्रोत, गन्ने की मिठास से भी मीठी प्रतीत होती है।  लेकिन ये भावनाएं तभी तक हैं जब तक मैं, मुझ तक सीमित हूँ, नहीं तो समाज की भट्ठी की तपिश इन्हें क्षण भर में झुलसा दे। © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

विरह अगन

विरह अगन में जलता मन , मिलने को तरस रहा है बूँद - बूँद हिय का दरिया , नयनों से बरस रहा है ' पी ' को जोहूँ , राह निहारूं , मन मेरा बौराए जब भी पिया सपनों में आते जिया हरस रहा है । ये जो जानती मोर पिया , अब ना कभी आएगा ऐसे ही यादों में आकर , मुझको भरमाएगा जाने नहीं देती उसको , दूर सौतन के देस अब ना आए मोर पिया तो ये हंसा उड़ जाएगा।   © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

रंग

हर रंग को  बाँध लिया है मैंने आँचल में जब भी फीकी पड़ेगी तुम्हारी ज़िन्दगी की रंगत कुछ गहरे कुछ हल्के रंग मल दूँगी ज़िन्दगी के चेहरे पर। © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!