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Showing posts from September 14, 2014

मुक्तक १

कल के हमकदम आज किधर गए ज़र्द पत्ते थे, पतझर में बिखर गए परछाइयों से जुदा होना आसां न था तेज़ हवा थी अहबाब भी मुकर गए -------------प्रियम्बरा © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

तूफ़ान ( त्रिवेणी )

रक्तिम आस्मां और फिजां खामोश तूफ़ान की तेज़ी से सहमा है चमन बादलों ने खेली है खून की होली।   ..............प्रियम्बरा © 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!