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अंतर्मन

ज़िन्दगी चलती जा रही ... या यूँ कहें भागती जा रही है। खानाबदोश सी हालत हो गयी है। ऐसा लगता है जैसे सबकुछ छुटता जा रहा है ... सबकुछ । कभी कभी लगता है मैं क्या कर रही हूँ , क्यों कर रही हूँ ? शायद मैं ऐसी ही ज़िन्दगी चाही थी .... पर अब पता नहीं क्यों मुझे वापस वही पुरानी ज़िन्दगी में जाने की चाहत हो रही है। इस बार घर गयी ...लम्बे समय तक रही, शायद उसी का असर हो । धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा । मैं फिर से इस दुनिया में रम जाउंगी...शायद।
बहुत दिनों बाद मैंने ब्लॉग पर कुछ डाला है ...वास्तव में इन दिनों मैं काफी उथल पुथल से गुज़र रही हूँ। छोटे शहर की ज़िन्दगी और महानगर की ज़िन्दगी के बीच बिलकुल फंसी हुई सी। दोनों जगहों में कुछ अंतर है तो कुछ समानता है। अंतर मिटा नहीं सकते पर समानता से थोडा कष्ट होता है।
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

Comments

अंतर्मन की ये उथल पुथल बहुत ही स्वाभाविक है...
मन के इस झंझावत से बाहर निकल कर खुद को खड़ा करने का नाम ही जिंदगी है...
daanish said…
achhaa hai ...
mn.neey . . . !!
Anonymous said…
achha likhti hain app
shubhkamnae
Anonymous said…
कष्ट होना जायज है

मेरा ब्लॉग पर आपके लिए "नटखट गोपाल"

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