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Showing posts from December 9, 2007
दिल्ली ... ऐसा शहर जहाँ सभी भाग रहे हैं. कोई काम के लिए भाग रहा है तो कोई काम खोजने के लिए भाग रहा है। घर के लिए समय नही, अपनों के लिए समय नही। ऐसा लगता है कि सारे रिश्ते यहाँ आकर छूटते चले जाते है। भावनाओ में बहने का भी समय नही। कभी चाही थी ऐसी ही जिन्दगी, पर अब ऐसा लग रहा है जैसे ऐसी जिन्दगी से तो मेरे आरा कि जिन्दगी ही भली थी । कम से कम वहाँ अपनों के लिए समय तो था। ज़रुरात्मंदो कि सहायता तो कर सकती थी।